तेरी तीखी नजरों ये ख़ंजर, नखरे की ये नजर, उफ़ ये मंजर ।
जुल्फों ने बढ़ाई ये बेकरारी कैसी, रुख पर तेरे ये पहरे के मंजर ॥
तेरी इस नजर की खातिर, कितनी बार न जाने
उसने बदले खुद के मंजर ।
शरारती नजरों को छिपाती निगाहें तेरी, कहे ना लफ्जों से
दानिश नजर बयाँ करती है खुद अपने मंजर॥...
जुल्फों ने बढ़ाई ये बेकरारी कैसी, रुख पर तेरे ये पहरे के मंजर ॥
तेरी इस नजर की खातिर, कितनी बार न जाने
उसने बदले खुद के मंजर ।
शरारती नजरों को छिपाती निगाहें तेरी, कहे ना लफ्जों से
दानिश नजर बयाँ करती है खुद अपने मंजर॥...