Friday 22 March 2019



नही पता ये बेकरारी क्यूँ है...
तेरे नाम से खुमारी क्यूँ है...
न तेरे नाम के सज़दे हैं सिला...
दानिश फ़क़त ये फ़रारी क्यूँ है ...



तू जुदा हो कर भी जुदा नहीं मुझसे...
रवां हो कर भी रवां नहीं मुझ में...
तू मिला था गोया मंजिल सा मुझे...
तेरे बिन अब ये आबकारी क्यूँ है...



न कहे जो मैंने किस्से कभी कहीं...
कहना दिन रात चाहता हूँ उसे...
हर घड़ी पाबन्द है तेरी मुहब्बत में...
फिर ये आँखों का दरिया खारी क्यों है...



समंदर सा वजूद लिए फिरता हूँ....
एक अदनी नन्हीं सी बूँद में ...
रूह के साए सी तुम वाज़िन्द हो... फ़िर
तूफानों में कश्ती किनारे उतारी क्यूँ है...